Saturday, June 22, 2013

शौर्यविका 

पथिक हूँ इस राह का
बस चलते जाना है मुझे
मायूस खड़ा मैं रो नहीं सकता
अपनी मंजिल को आखिर पाना है मुझे।

थककर  विश्राम मैं करूँगा यदि
अँधेरी काया मुझे नोंच डालेगी यहीं
नींद के आगोश में खो जाऊंगा अगर
सपनों की दुनिया से फिर निकल पाउँगा नहीं।

बोलकर चला हूँ उसे पाकर ही लौटूंगा
साँस भी टूटे, तब भी न रुकुंगा
 इस डगमगाती रह पर मदमस्त मैं चला
इन रेशमी परछाइयों में मैं न भात्कुंगा।

दूर से आया हूँ अभी दूर जाना है
पाने की ललक में देखता हूँ तुझे
गिर कर उठ कर चलता जा रहा हूँ मैं
मेरी मंज़िल की रौशनी पथ दिखा रही है मुझे। 

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