26 जनवरी गणतंत्र भारत को दिखा रही,
गाँधी और वीर भगत की याद दिला रही।
देश का हर एक व्यक्ति न चूकेगा इसे मनाने से,
न भूलेगा अपने भारत की गाथाओं को गाने से।
वेदना और पीड़ा को हर व्यक्ति भूल जायेगा,
अपनी कल्पनाओं के रंगों से भारत को जब सजाएगा।
पर क्या आज भी उस भारत का स्वरूप जीवित है,
जब बच्चा रोटी, कपडे और मकान के लिए पीड़ित है।
वेद, पुराण और गीता की शान मिटी जा रही,
दो नंबर की मैना जब इनके श्लोकों पर नाच रही।
ईमानदारी बिक रही, लोगों की पानी- सी,
सच्चाई तो लगती है कोई सुनी बात पुरानी सी।
अधिकारी आज टेबल के नीचे स्वर्ग बनाया करते हैं,
रिश्वतखोरी और बेईमानी का पाठ पढाया करते हैं।
आज अंग्रेज भारत को देख मन ही मन हँसते हैं,
छोड़कर चले जाने की खुशियाँ मनाया करते हैं।
ज़रुरत है हममें से कुछ सच्चे लोगों की,
जो नाक में कर दे दम अन्यायी लोगों की।
कर प्रतिज्ञा आज हमें अरुण भारत में लाना है,
हर अनैतिक विचार को जड़ से हमें मिटाना है।
हमारे भविष्य का भारत सुखी तभी बन पायेगा,
जब इसके ह्रदय में नैतिक दीप जगमगाएगा।
Saturday, April 3, 2010
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