वो बचपन की यादें
वो बचपन की यादें
वो बचपन की बातें
भूले से न भूलेंगी
वो दिन वो रातें।
छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ छलकती थी
अम्मा के आँचल में ज़िन्दगी बसती थी
कभी बहला कर तो कभी फुसला कर
अँधेरी छाया में भी रौशनी चमकती थी।
चंदा को मामा तो बिल्ली को मौसी कहना
अनजानों को हंस कर अपना बनाना
ईर्ष्या न द्वेष न पाप की महक थी
बचपन का दिन भी था कितना सुहाना।
रोते हुए भी हंस देते थे
गिर कर भी उठ जाते थे
एक पल में बाबा को देख
स्वर्ग की असीम खुशियाँ पा लेते थे
था वो बचपन अपना
बन गया एक किस्सा पुराना
भूले से न भूलेंगे
वो समय वो ज़माना।